कभी खून में सने थे इनके हाथ, आज दूसरों की जान बचाने के लिए बना रही हैं मास्क

भोपाल. जेल में बंद महिला कैदियों (Female prisoners) को कोरोना के इस संकट में पश्चाताप का मौका मिला है. जिन महिला कैदियों के हाथ कभी खून से सने थे, वो आपदा की इस घड़ी में सबकी जान बचाने के लिए मास्क बना रही हैं. जेल (jail) के अंदर वो रात-दिन मास्क सिल रही हैं. इस काम में उनके वो नन्हें-मुन्ने भी साथ दे रहे हैं जो मां के साथ ही जेल में ही रह रहे हैं.

हम भोपाल सेंट्रल जेल की बात कर रहे हैं. यहां 13 महिला कैदी भी सज़ा काट रही हैं. इनके साथ उनके 6 साल तक के बच्चे भी रहते हैं. प्रदेश की जेलों में कोरोना की आपदा से निपटने के लिए मास्क तैयार किए जा रहे हैं. भोपाल सेंट्रल जेल में पुरुष कैदियों के साथ ये 13 महिला कैदी भी मास्क बना रही हैं. इन महिला कैदियों के छोटे-छोटे बच्चे भी हैं, जो इनके साथ ही जेल में रहते हैं. जब यह महिलाएं मास्क बनाती हैं तो ये नन्हे-मुन्ने दौड़-दौड़ कर अपनी मां की मदद करते हैं. जेल अधिकारियों ने बताया कि इन 13 महिलाओं में अधिकांश महिलाएं हत्या के मामले में सज़ा काट रही हैं.

10 रुपये का एक मास्क
भोपाल सेंट्रल जेल के अधीक्षक दिनेश नरगावे ने बताया कि जेल के अंदर तैयार किए जा रहे मास्क की कीमत 10 रुपये आती है. इनकी डिमांड ज्यादा है, क्योंकि यह अच्छे कपड़े से तैयार किए जा रहे हैं. पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग के साथ दूसरे विभागों में ये सप्लाई किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं प्राइवेट सेक्टर में भी कैदियों के तैयार किए गए मास्क की डिमांड है. कई निजी अस्पतालों के साथ दूसरी जगहों पर भी मास्क भेजे गए हैं. जैसे जैसे डिमांड आ रही वैसे वैसे मास्क तैयार किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि जिन महिला कैदियों को मास्क तैयार करने में लगाया गया है, उन सभी महिलाओं को सिलाई करना आता है. भोपाल सेंट्रल जेल के साथ प्रदेश की दूसरी जेलों में भी मास्क बनाने का काम चल रहा है.

जेल में पढ़ते हैं बच्चे
भोपाल सेंट्रल जेल में ये जो 13 महिला कैदी हैं उनके 6 साल तक के बच्चे भी हैं. जेल नियम के तहत 6 साल तक के बच्चों को उनकी मां के पास ही रहने दिया जाता है. 6 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को जेल के बाहर पढ़ाया जाता है. जो 13 बच्चे जेल के अंदर हैं, उनकी पढ़ाई की व्यवस्था भी अलग से की जाती है. इनके लिए बाकायदा एक टीचर नियुक्त है. जो महिला कैदी पढ़ी लिखी होती हैं वो भी इन बच्चों को समय-समय पर पढ़ाती हैं. बच्चों की पढ़ाई के साथ उनके खेलने कूदने की भी जेल में व्यवस्था की गई है.