बोर्ड के परीक्षार्थी बोले'हमें भी कोरोना का डर‘बोर्ड नहीं


राज्य में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए स्कूल, कॉलेज, मंदिर, मॉल, थिएटर, सरकारी कार्यालय आदि बंद कर दिए गए हैं। लेकिन, राज्य सरकार स्टेट बोर्ड की दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं निर्धारित तारीख पर करवाने पर अड़ी हई है। ऐसे में विद्यार्थियों के मन में कोरोना को लेकर असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई है। अभिभावक भी परीक्षा के आयोजन को लेकर चिंतित हैं। अभिभावक नहीं चाहते कि उनके बच्चे ऐसे अभिभावक नहीं चाहते कि उनके बच्चे ऐसे माहौल में परीक्षा देने जाएं। बोर्ड के विद्यार्थियों के मुताबिक, उन्हें भी कोरोना हो सकता है। जब उच्च शिक्षा मंत्री उदय सामंत यूनिवर्सिटी की सभी परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय ले सकते हैं, तब स्कूली शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड बोर्ड की परीक्षाओं को टालने के लिए किसका इंतजार कर रही हैं। दसवीं में परीक्षा के लिए बैठे एक विद्यार्थी के अभिभावक अरविंद मिश्र के मुताबिक, 'पिछले एक सप्ताह में कोरोना को लेकर भय का माहौल है। ऐसे में कोई घर से बाहर नहीं जाना चाहता और न ही अपने बच्चों को बाहर कहीं भेजना चाहता है। लेकिन, बोर्ड की परीक्षा के चलते बाहर जाना उनकी मजबूरी है। राज्य सरकार और स्कूली शिक्षा मंत्री को बच्चों की परवाह नहीं है। बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जिंदगी मिलकर रहे या न रहे, लेकिन परीक्षा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।' उनका कहना है कि अगर सब कुछ सही है और नियंत्रण में है, तब यूनिवर्सिटी की परीक्षा क्यों रद्द की गई है? सरकारी कार्यालयों में छुट्टी क्यों घोषित की गई है? उच्च अधिकारियों और मंत्रियों को अपने जान की परवाह है, लेकिन बच्चों की जान की चिंता नहीं है। इसीलिए वे बोर्ड की परीक्षा की तारीख को आगे बढ़ाने का निर्णय नहीं ले रहे हैं। अगर कोई बच्चा परीक्षा के लिए आते-जाते कोरोना वायरस के संक्रमण का शिकार हो गया, तो कौन जिम्मेदार होगा?